चाहा तो बहोत लेकिन वो मिला ही नहीं,
लाख कोशिश की मगर यह फासला मिटा ही नहीं,
इस ज़माने ने मजबूर ही इस कदर किया था की,
मेरी किसी सदा पर वो ठहरा ही नहीं!
खुदा से झोली फैला कर माँगा था उसे,
खुदा ने मेरी दुआ को शायद सुना ही नहीं,
हर एक से सबब पुछा तेरे न मिलने का,
हर एक ने काहा वो तेरे लिए बना ही नहीं!
मैं अपनी तमाम कोशिशो के बावजूद तुझे हार गया,
और तू उसे मिल गया जिस ने तुझे कभी माँगा ही नहीं,
इतनी शिद्दत से चाहा मगर तू किसी और का हो गया,
शायद इस जहाँ में वफ़ा का कोई सिला ही नहीं!
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